Navanita Gupta

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होली के गल कुछ दास्ताँ ऐसा भी (स

होली के गल कुछ दास्तां ऐसा भी

सुन लो! आज सब होली के गल, मिटा के नफरत दिलों से, भुलेगे ना अब खुशियों के पल। होली में अबके बरस फिर से जमके रंग -गुलाल उड़ायेंगे, होके होली के रंग में मदमस्त हर रंजोगम को भुलाये। और अब आने वाली है होली, जमके रंगों की बारिश में फिर से भींग जाए, सपनों के सतरंगी जाल से फिर से मुक्त हो जाए। होली है भक्त प्रहृलाद की भक्ति का प्रमाण, जिसने होलिका के गोद में बैठकर अग्निदेव को दिया अपनी भक्ति का प्रमाण। जिससे खुश होकर देवगण ने भी भक्त प्रहृलाद का किया गुणगान, देखकर ये सुखद घटना देशवासियों में खुशी की लहर छा गयी, इस तरह होली मनाने की प्रथा सदियों से चलती आ गयी। उड़े रंग गुलाल अब आसमानों में, कि अब पिचकारियां भी सजने लगी है दुकानों में, कि अब आ जाओ होली खेलने दोस्तों के संग, वक्त ना गंवाओ अब शरमाने में, कि चारों तरफ खुशियाँ ही छलकी है वक्त के पैमाने में, यही दास्ताँ है होली के गल, हर दु:ख दुर हो जाए मिले सबको खुशियों के पल।।

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4 Comments

Varsha_Upadhyay

04-Oct-2023 08:25 PM

Nice one

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Babita patel

04-Oct-2023 12:53 PM

v nice

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सुन्दर अति सुन्दर

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